तन्तु - प्रेरित गात्र हैं हम,
एक पुतले मात्र हैं हम,
इस जगत की नाटिका के -
क्षणिक भंगुर पात्र हैं हम,
इसलिए हर भूमिका में,
रंग भरे हम भूमिजा मे,
बन सके निरपेक्ष,
तो फिर ,
क्या दुआ क्या बद्दुआ है,
लग रहे हैं समय-बाधित,
आप अपने से पराजित,
चलो आज तम तो भगाएं,
रंगों का धुआं उडाये,
चलो आज होली मनाएं
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