Saturday, January 06, 2007

Leaves Of Love

चांदनी मे नहायी हुई,
रात के सन्नाटे को चीरती,
प्रेमी का प्रेयसी के
दरवाजे पर दस्तक,
एक अन्तराल एक मौन,
प्रेयसी की आवाज - 'कौन'
प्रेयसी की आवाज से प्रेमी का ह्रदय आलब्ध
निकले शब्द ,
मै ,
तेरा प्रेमी ,
जिसकी तुने राह तकी
फिर भी ना तेरी आँखे थकी
रह ना सका
चाह कर भी कुछ कह ना सका,
सुनकर तेरी पुकार
आ गया तेरे द्वार,
दोनो को प्यार है
दोनो का सारा संसार है।



फिर अन्तराल ,
फिर मौन,
बन्द दरवाजे से ही,
वह बोली,
प्रेम भले से सतरंग है,
किन्तु ये गली तंग है,
प्रेम अछुता आलिंगन है,
स्वतंत्र करता ये बंधन है,
इसलिये,
मेरे प्रेमी तुम हो नही सकते
प्रेम में दो हो नही सकते,
प्रेम मे तो सिर्फ एक,
तो,
जाऒ,
और उस एक को,
खोज के लाऒ,
तब फिर आना इस पार,
तब खुलेंगे मेरे द्वार।

शब्द ऐसे सुनकर,
खुद में खुद को बुनकर,
चल निकला वह,
चलते चलते,
उस एक को पाने की चाह में ,
भूल गया वह राह भी अपनी ,
सालो बीते ,
बीते कई वसंत ,
था वह अब भी असमंजस में,
दो को एक बनाऊ कैसे,
दोहराता अपने अंतस में,
हार कर एक दिन,
आखे मींचे,
बैठ गया एक पेड़ के नीचे ,
सारी ऊसने खोज बंद की ,
तभी अचानक ,
मौन में,
वही मिल गया,
जिसको पाने वह निकला था,
जिसमे सारा जीवन निकला था ।



था वह पूरा जागा ,
वापस भागा,
चमक रहीं थी आखे उसकी ,
मसतक भी,
फिर दरवाजे पर दस्तक दी,
फिर प्रेयसी की आवाज आई,
'कौन'
प्रेमी बोला ,
आज मै नही आया ,
आया है सावन प्रेम का ,
आई है नयी खुशबू ,
प्रेम की इस गली मे मैं नही ,
अब है सिर्फ तू ही तू,
सुनकर यह,
जैसे वीणा के तार हिल गये ,
सालो से बंद पडे ,
द्वार खुल गये ।



( जलालुद्दीन रूमी की छोटी किन्तु अत्यंत रहस्यवादी कहानी से प्रेरित )

I apologise dearly for the spelling mistakes. The blame though I would bestow upon my lack of knowledge of any other better software to write the above poem in hindi rather than lack of my lingual knowledge. I also, impart Tushar Waghela my gratitude without whose help posting my poems in hindi on my blog was quite out of question.


 

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