कल
नंगे डायोजिनस को बुत के आगे ,
हाँथ फैलाते देखकर ,
रूककर,
मैने पूछा,
तू क्या कर रहा ह,ै
क्या बता रहा ह,ै
पत्थर के आगे हाँथ फैला रहा ह,ै
गहरी साँस लेकर ,
मुस्कुराकर उसने कहा -
मैं पागल हूँ ,
यह तुम सबका विश्वास है,
लेकिन पत्थर के आगे हाँथ फैलाना,
मेरे उपेक्षित होने कि कला,
का अभ्यास है ।
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