धैर्य रखो
जानो और समझो
हो किंचित भी समय बाधित
हो ना किंतु ख़ुद से पराजित
काल ने जो कुछ चुना है
निशब्द निर्णय जो बुना है
उसे जियो
और पियो
जैसे शिव ने विष-पान किया था
कठोर को कोमल किया था
इसलिए शिव बनो
और धैर्य रखो
खोजो और सींचो
उस गुण-तत्व को
पत्तो से झड़ते अपनत्व को
संघर्ष जनेगी मेधा को फिर
आकाश बनेगा छाती तुम्हारी
प्रेम बनेगा भाषा तुम्हरी
नक्षत्र करेंगे रक्षा पग पग
राह में होंगे तारे जग मग
अपमान 'अब' का
कवच बनेगा 'तब' का
निर्माता का निर्माण हो तुम
तुम में है प्रारब्ध की छाया
बूंदे अमृत की तुम में भी हैं
इसलिए अन्धकार से डरना कैसा
अपने दीपक ख़ुद बनो
और धैर्य रखो
2 comments:
very inspiring. i am deeply influenced after reading this.i am filled with optimism......great !
Amit is this poem really written by u.My God what a poetry what thoughts just loved it.i have copied it on a chart paper and pasted it on my wall.I read it atleast once a day.But how come no post on death of michael jackson.Waitng to hear ur views regarding him.
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